Skip to main content

Posts

हौसलें अगर बुलंद हों और जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता।

             BY   MY COLLEGE NOTIFIER             तुम कहीं की कलेक्टर हो क्या? ये ताना सुनने के बाद प्रियंका शुक्ला बनी  IAS ऑफिसर   हौसलें अगर बुलंद हों और जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता। कुछ ऐसा ही कर दिखाया  IAS ऑफिसर प्रियंका शुक्ला ने, तो आइये जानते हैं  प्रियंका शुक्ला के जीवन की कहानी। IAS बन चुकीं प्रियंका शुक्ला का जन्म हरिद्वार में हुआ था, और वो वहीं पली-बढ़ीं। उनकी शुरुआती शिक्षा भी वहीं से हुई। प्रियंका शुक्ला के पिता की दिली ख्वाहिश थी कि उनकी बेटी बड़ी होकर डीएम बने। मगर उस समय के हालत को देखते हुए प्रियंका शुक्ला ने मेडिकल के क्षेत्र में कैरियर बनाने का फैसला लिया। साल 2006 में प्रियंका ने लखनऊ की प्रतिष्ठित किंग जॉर्ज्स मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस किया था। एमबीबीएस पूरा कर लेने के बाद प्रियंका शुक्ला लखनऊ में ही प्रैक्टिस करने लगीं थीं। इस प्रैक्टिस के दौरान ही उनके साथ कुछ ऐसी घटना घटी,जिसके बाद उन्होंने IAS ऑफिसर बनने की कसम खा ल...

सेल्फ स्टडी और यूट्यूब से पढ़कर रोमा बनीं UPSC टॉपर

         BY   MY COLLEGE NOTIFIER यूपीएससी कैंडिडेट्स की सफलता की कहानी जब सामने आती है तो उनमें से अधिकतर कैंडिडेट्स यह कहते पाये जाते हैं कि प्रिपरेशन के दौरान उन्होंने सोशल मीडिया से एकदम दूरी बना ली थी. अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स डिलीट कर दिये थे और यहां बहुत समय बर्बाद होता है आदि. लेकिन आज हम आपको जिस कैंडिडेट से मिलाने जा रहे हैं वे इसी सोशल मीडिया के एक प्रचलित अंग यूट्यूब को अपनी सफलता का श्रेय देती हैं. वे इंटरनेट से पढ़ाई को गलत नहीं मानती बल्कि कहती हैं कि पूरी प्रिपरेशन के दौरान उन्हें जहां भी समस्या हुई या जो टॉपिक समझ नहीं आया उन्होंने हमेशा उसे यूट्यूब पर सर्च करके पढ़ा. आज जानते हैं रोमा श्रीवास्तव से उनकी यूपीएससी जर्नी के बारे में   पहले भी हो चुकी हैं चयनित – दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में रोमा कहती हैं कि साल 2019 की सफलता उन्हें चौथे प्रयास में मिली है. इसके पहले भी दो बार रोमा यूपीएससी सीएसई परीक्षा में सेलेक्ट हो चुकी हैं और रैंक के अनुसार उन्हें सेवाएं एलॉट हुई थी. साल 2017 में पहली बार चयन होने पर रोमा को मिली थी इ...

कभी दिल्ली की सड़को पर चलाता था तांगा आज है इस बड़ी मसाला कंपनी का मालिक

            BY  MY COLLEGE NOTIFIER किसी को कम उम्र में आसानी से सफलता मिल जाती है, तो किसी को सफलता हासिल करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसी ही शख्सियत है  देश के मशहूर उद्योगपति, एमडीएच मसाले के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी,  जिन्हें काफी संघर्ष के बाद जिंदगी में बड़ी सफलता मिली। महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था।  भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद धर्मपाल गुलाटी रोजगार की तलाश में दिल्ली आ गए थे, और यहां आकर उन्होंने तांगा चलाना शुरू कर दिया था। जब वो भारत पहुंचे तो उनके पास केवल 1500 रुपए थे, जो कि उनके पिता ने दिए थे। इन्हीं पैसों में से उन्होंने तांगा खरीद लिया था, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें इस काम से बोरियत महसूस होने लगी। तब धर्मपाल गुलाटी ने वो तांगा अपने भाई को देकर मसाले बेचना शुरू किया। दिल्ली आकर उस ज़माने में पैसे कमाना आसान नहीं था, बल्कि बहुत बड़ी चुनौती थी। भाई को तांगा देने के बाद उन्होंने अजमल खां रोड पर ही एक छोटा सा खोखा लगाकर मसाला बेचना शुरू कर दिया। बता दें कि पाकिस्तान ...

IIT से IAS ऑफिसर तक, संघर्ष भरी थी अभिषेक सराफ की डगर

              BY   MY COLLEGE  NOTIFIER भोपाल के अभिषेक ने यूं तो अपने जीवन में बहुत सी सफलताएं हासिल की पर उनका यूपीएससी का सफर खासा लंबा और कठिनाई भरा रहा. जैसे की यूपीएससी एस्पिरेंट्स कहते ही हैं कि यह जर्नी हर मायने में खास होती है. अगर आप चयनित नहीं भी होते तो भी इतना कुछ सीख जाते हैं कि जीवन पहले जैसा नहीं रह जाता, आप एक इंसान के तौर पर बहुत इम्प्रूव कर जाते हैं. अभिषेक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. चूंकि अभिषेक को यूपीएससी में अपनी मनचाही रैंक मिलने में चार साल लग गए इसलिए वे इसकी तैयारी के विषय में बहुत बारीकी से जान गए. एक-एक हिस्से को वे इतनी भली प्रकार समझा देते हैं कि किसी नये एस्पिरेंट को ज्यादा कठिनाई न हो. अभिषेक ने कानपुर आईआईटी से सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है. इसके बाद वे रेलवे में एग्जीक्यूटिव ऑफिसर ट्रेनी के पद पर काम करने लगे. यहां काम करने के दौरान ही कुछ कारणों से उनका यूपीएससी परीक्षा देने का मन किया. इस प्रकार शुरू हुआ अभिषेक का यूपीएससी का यह सफर जो चार साल के बाद पड़ाव तक पहुंचा. अपना मोटिवेशन साफ कर लें ...

आईएएस बनने के अपने सपने के लिए अपना घर छोड़ दिया था.

            BY   MY COLLEGE NOTIFIER दिल्ली से सटे मेरठ शहर में एक कस्बा है किठौर. इसी कस्बे के पास एक गांव की लड़की की बगावत की कहानी तमाम लड़कियों के लिए नजीर बन गई है. ये लड़की है संजूरानी वर्मा, जिसने आईएएस बनने के अपने सपने के लिए अपना घर छोड़ दिया था.  जी हां, संजू रानी ने अपने सपनों के लिए पुरानी परंपराओं और सोच से बगावत की, अपनों का विरोध झेला लेकिन बिना डिगे अपने लक्ष्य की दिशा में बढ़ गईं. वो साल 2020 में यूपी पीसीएस की परीक्षा में सेलेक्ट होकर एक पीसीएस अफसर बन गई हैं, लेकिन उनका अभी कलेक्टर बनने का सपना बाकी है.  aajtak.in से बातचीत में संजूरानी ने कहा कि मेरे घरवाले मेरी शादी करना चाहते थे लेकिन मैं आगे की पढ़ाई करना चाहती थी. फिर साल 2013 में जब मेरी मां की डेथ हुई तो मैंने सोचा कि मैं अलग रहूं, क्योंक‍ि मेरी सोच उनसे (परिवार के पुरुषों) से नहीं मिलती. वो कहती हैं कि सोच आज भी कम मिलती है. परिवार के लोग मेरी शादी करना चाहते थे. तभी मैंने घर छोड़ा और दिल्ली में आकर तैयारी शुरू कर दी.  वो बताती हैं कि यहां आकर अपना खर्च ...

पहले ही प्रयास में मात्र एक साल की तैयारी से 22 साल की अनन्या बनीं UPSC टॉपर

                     BY   MY COLLEGE NOTIFIER प्रयागराज की अनन्या सिंह ने 22 साल की उम्र में अपने पहले ही प्रयास में साल 2019 की यूपीएससी परीक्षा में 51वीं रैंक के साथ टॉप किया. अनन्या आज बता रही हैं कि कैसे एक से डेढ़ साल की तैयारी में भी इस परीक्षा को पास किया जा सकता है. यूपीएससी की तैयारी जहां किसी-किसी के लिए एक लंबी जर्नी हो जाती है, वहीं कुछ कैंडिडेट ऐसे भी होते हैं जो स्मार्ट वर्क, हाडवर्क और प्रॉपर स्ट्रेटजी के बलबूते पहले ही साल में मंजिल पा लेते हैं. ऐसे स्टूडेंट्स की इस सफलता में बहुत से फैक्टर काम करते हैं पर सबसे अहम होता है हार्ड वर्क प्लस स्मार्ट वर्क. प्रयागराज की अनन्या भी ऐसी ही एक कैंडिडेट हैं जिन्होंने सही दिशा में प्लानिंग और कड़ी मेहनत से पहले ही प्रयास में न सिर्फ यूपीएससी परीक्षा पास की बल्कि अपने आईएएस बनने के सपने को भी साकार किया. अनन्या बचपन से ही आईएएस बनना चाहती थी और ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष से उन्होंने इस दिशा में प्रयास भी शुरू कर दिए थे. जिसमें सबसे कॉमन लेकिन महत्वपूर्ण था न्यूज पेपर पढ़न...

जिंदगी में संघर्ष और मेहनत करने वालों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता

                 BY   MY COLLEGE  NOTIFIER बचपन में पैरों पर नहीं हो पाती थी खड़ी, फिर भी ऐसे बनीं दुनिया की सबसे तेज धाविका जिंदगी में संघर्ष और मेहनत करने वालों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता,बसर्ते कोई भी काम सच्ची निष्ठा से किया जाए। वो कहते है यदि कोई काम सच्चे मन से किया जाए तो सारी कायनात उसे पूरा करने में आपकी पूरी मदद करती है। विल्मा रुडोल्फ ऐसी ही शख्सियत हैं, जिन्होंने दिव्यांग होने के बावजूद नामुमकिन शब्द को मुमकिन में बदल दिया। विल्मा रुडोल्फ का जन्म 1940 में अमरीका के टेनेसी प्रांत के एक गरीब घर में हुआ था। इनकी मां  घर-घर जाकर काम करती तो पिता कुली का काम किया करते थे। एक दिन अचानक से विल्मा को पैरों में बहुत तेज़ दर्द होने लगा,जिसके बाद उनके परिवार वाले इलाज के लिए अस्पताल लेकर गए, जहां जाकर उन्हें पता चला कि उनकी बेटी को पोलियो हो गया और अब वे कभी चल नहीं पाएगी। बचपन में जब विल्मा अपने भाई -बहनों को खेलते हुए देखती तो उन्हें काफी तकलीफें होती और वो कई बार रोने भी लग जाती थी। वो अपनी मां से कहती उन्हें भी खे...