BY DIVAKAR KUMAR PANDAY
दुनिया में जब दूसरी कंपनियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही हैं, रिलायंस ने लॉकडाउन के बीच कुछ ही हफ्तों के भीतर फेसबुक, जनरल अटलांटिक, सिल्वर लेक और विस्टा इक्विटी पार्टनर जैसी चार विदेशी कंपनियों से सौदे किए हैं. न्यू कॉमर्स के रूप में रिलायंस को ग्रोथ का नया इंजन मिल गया है. जुलाई 2018 में जब अंबानी ने अपने न्यू कॉमर्स वेंचर की स्थापना की थी तो उन्होंने कहा था कि इसमें भारत के खुदरा कारोबार को नई परिभाषा देने की क्षमता है और यह अगले वर्षों में रिलायंस के लिए नया ग्रोथ इंजन बन सकता है.
- रिलायंस अब ग्रोथ का नया इंजन हासिल कर चुकी है
- दुनिया की दिग्गज टेक-कंज्यूमर कंपनियों से ली सीख
- देश के 52.5 लाख करोड़ के न्यू कॉमर्स पर नजर
एक तीर से दो शिकार कैसे करते हैं, यह कोई रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) के चेयरमैन मुकेश अंबानी से पूछे. दुनिया में जब दूसरी कंपनियां अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही हैं, अंबानी ने लॉकडाउन के बीच कुछ ही हफ्तों के भीतर फेसबुक, जनरल अटलांटिक, सिल्वर लेक और विस्टा इक्विटी पार्टनर जैसी चार विदेशी कंपनियों से सौदे किए हैं. असल में 'न्यू कॉमर्स' के रूप में रिलायंस को ग्रोथ का नया इंजन मिल गया है.
67,195 करोड़ रुपये का निवेश
इन सब डील से रिलायंस को करीब 67,195 करोड़ रुपये का निवेश मिला है. इसका बड़ा हिस्सा रिलायंस का कर्ज चुकाने में लगाया जाएगा. इन सौदों से रिलायंस अपनी गाड़ी को ग्रोथ के अगले स्टेशन की तरफ ले जाने को तैयार है-700 अरब डॉलर (करीब 52,50,000 करोड़ रुपये) का 'न्यू कॉमर्स' अवसर.
क्या है रिलायंस का न्यू कॉमर्स
जुलाई 2018 में जब अंबानी ने अपने 'न्यू कॉमर्स' वेंचर की स्थापना की थी तो उन्होंने कहा था कि इसमें भारत के खुदरा कारोबार को नई परिभाषा देने की क्षमता है और यह अगले वर्षों में रिलायंस के लिए नया ग्रोथ इंजन बन सकता है. इसके द्वारा रिलायंस डिजिटल और फिजिकल बाजार का एकीकरण करेगी और एमएसएमई, किसानों, किराना दुकानदारों के विशाल नेटवर्क का दोहन किया जाएगा. अमेरिका की दिग्गज कंपनी फेसबुक के साथ डील कर कंपनी इसके स्वामित्व वाले वॉट्सऐप की व्यापक पहुंच का फायदा उठाएगी और अपने न्यू कॉमर्स बिजनेस की गाड़ी को तेज गति प्रदान करेगी.
दोनों के लिए फायदा
इन सौदों से ऐसा नहीं है कि सिर्फ रिलायंस का फायदा हो रहा हो. इनसे उनके ग्लोबल पार्टनर्स को भी फायदा है. निकट भविष्य में जियो में कई और निवेशक निवेश करेंगे और इससे जो वैल्युएशन बढ़ेगा उससे जनरल अटलांटिक, सिल्वर लेकर और विस्टा को अच्छा फायदा मिलेगा. फेसबुक को भारत में रिलायंस के व्यापक नेटवर्क और संपर्क का फायदा मिलेगा और वह अपने कई प्रोजेक्ट के लिए नियामकीय सहयोग इस तरह से हासिल कर पाएगी.
रिलायंस इंडस्ट्रीज जियो को सिर्फ टेलीकॉम ऑपेरटर नहीं बल्कि एक डिजिटल कंपनी के रूप में विकसित कर रही है. मुकेश अंबानी रिलायंस को अब एनर्जी फोकस वाली कंपनी बनाए रखने की जगह विविधता वाली कंपनी बनाने पर जोर दे रहे हैं. रिलायंस इंडस्ट्रीज ने साल 2006 में खुदरा कारोबार और 2010 में टेलीकॉम कारोबार में प्रवेश किया था.
क्यों बनना चाहती है टेक-कंज्यूमर कंपनी
असल में रिलायंस को अब भविष्य टेक कंपनियों में शायद दिख रहा है. इसलिए रिलायंस खुद को कंज्यूमर प्लस टेक कंपनी के रूप में स्थापित कर रही है. रिलायंस के सीएफओ आलोक अग्रवाल ने एक बार कहा था कि दुनिया में 3 बड़ी टेक कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 1 ट्रिलियन डॉलर है, दूसरी तरफ सभी एनर्जी कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण मिलाकर भी 600 अरब डॉलर के पार नहीं हो पाया है. इसलिए निवेशक अब एमेजॉन, ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी टेक-कंज्यूमर कंपनियों में निवेश करना पसंद कर रहे हैं. जियो प्लेटफॉर्म्स भी इसी दिशा में बढ़ रही है, हालांकि अभी उसे काफी लंबी यात्रा करनी है
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