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Showing posts from September, 2020

सेल्फ स्टडी और यूट्यूब से पढ़कर रोमा बनीं UPSC टॉपर

         BY   MY COLLEGE NOTIFIER यूपीएससी कैंडिडेट्स की सफलता की कहानी जब सामने आती है तो उनमें से अधिकतर कैंडिडेट्स यह कहते पाये जाते हैं कि प्रिपरेशन के दौरान उन्होंने सोशल मीडिया से एकदम दूरी बना ली थी. अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स डिलीट कर दिये थे और यहां बहुत समय बर्बाद होता है आदि. लेकिन आज हम आपको जिस कैंडिडेट से मिलाने जा रहे हैं वे इसी सोशल मीडिया के एक प्रचलित अंग यूट्यूब को अपनी सफलता का श्रेय देती हैं. वे इंटरनेट से पढ़ाई को गलत नहीं मानती बल्कि कहती हैं कि पूरी प्रिपरेशन के दौरान उन्हें जहां भी समस्या हुई या जो टॉपिक समझ नहीं आया उन्होंने हमेशा उसे यूट्यूब पर सर्च करके पढ़ा. आज जानते हैं रोमा श्रीवास्तव से उनकी यूपीएससी जर्नी के बारे में   पहले भी हो चुकी हैं चयनित – दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में रोमा कहती हैं कि साल 2019 की सफलता उन्हें चौथे प्रयास में मिली है. इसके पहले भी दो बार रोमा यूपीएससी सीएसई परीक्षा में सेलेक्ट हो चुकी हैं और रैंक के अनुसार उन्हें सेवाएं एलॉट हुई थी. साल 2017 में पहली बार चयन होने पर रोमा को मिली थी इ...

कभी दिल्ली की सड़को पर चलाता था तांगा आज है इस बड़ी मसाला कंपनी का मालिक

            BY  MY COLLEGE NOTIFIER किसी को कम उम्र में आसानी से सफलता मिल जाती है, तो किसी को सफलता हासिल करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसी ही शख्सियत है  देश के मशहूर उद्योगपति, एमडीएच मसाले के मालिक महाशय धर्मपाल गुलाटी,  जिन्हें काफी संघर्ष के बाद जिंदगी में बड़ी सफलता मिली। महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म 27 मार्च 1923 को पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था।  भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद धर्मपाल गुलाटी रोजगार की तलाश में दिल्ली आ गए थे, और यहां आकर उन्होंने तांगा चलाना शुरू कर दिया था। जब वो भारत पहुंचे तो उनके पास केवल 1500 रुपए थे, जो कि उनके पिता ने दिए थे। इन्हीं पैसों में से उन्होंने तांगा खरीद लिया था, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें इस काम से बोरियत महसूस होने लगी। तब धर्मपाल गुलाटी ने वो तांगा अपने भाई को देकर मसाले बेचना शुरू किया। दिल्ली आकर उस ज़माने में पैसे कमाना आसान नहीं था, बल्कि बहुत बड़ी चुनौती थी। भाई को तांगा देने के बाद उन्होंने अजमल खां रोड पर ही एक छोटा सा खोखा लगाकर मसाला बेचना शुरू कर दिया। बता दें कि पाकिस्तान ...

IIT से IAS ऑफिसर तक, संघर्ष भरी थी अभिषेक सराफ की डगर

              BY   MY COLLEGE  NOTIFIER भोपाल के अभिषेक ने यूं तो अपने जीवन में बहुत सी सफलताएं हासिल की पर उनका यूपीएससी का सफर खासा लंबा और कठिनाई भरा रहा. जैसे की यूपीएससी एस्पिरेंट्स कहते ही हैं कि यह जर्नी हर मायने में खास होती है. अगर आप चयनित नहीं भी होते तो भी इतना कुछ सीख जाते हैं कि जीवन पहले जैसा नहीं रह जाता, आप एक इंसान के तौर पर बहुत इम्प्रूव कर जाते हैं. अभिषेक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. चूंकि अभिषेक को यूपीएससी में अपनी मनचाही रैंक मिलने में चार साल लग गए इसलिए वे इसकी तैयारी के विषय में बहुत बारीकी से जान गए. एक-एक हिस्से को वे इतनी भली प्रकार समझा देते हैं कि किसी नये एस्पिरेंट को ज्यादा कठिनाई न हो. अभिषेक ने कानपुर आईआईटी से सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है. इसके बाद वे रेलवे में एग्जीक्यूटिव ऑफिसर ट्रेनी के पद पर काम करने लगे. यहां काम करने के दौरान ही कुछ कारणों से उनका यूपीएससी परीक्षा देने का मन किया. इस प्रकार शुरू हुआ अभिषेक का यूपीएससी का यह सफर जो चार साल के बाद पड़ाव तक पहुंचा. अपना मोटिवेशन साफ कर लें ...

आईएएस बनने के अपने सपने के लिए अपना घर छोड़ दिया था.

            BY   MY COLLEGE NOTIFIER दिल्ली से सटे मेरठ शहर में एक कस्बा है किठौर. इसी कस्बे के पास एक गांव की लड़की की बगावत की कहानी तमाम लड़कियों के लिए नजीर बन गई है. ये लड़की है संजूरानी वर्मा, जिसने आईएएस बनने के अपने सपने के लिए अपना घर छोड़ दिया था.  जी हां, संजू रानी ने अपने सपनों के लिए पुरानी परंपराओं और सोच से बगावत की, अपनों का विरोध झेला लेकिन बिना डिगे अपने लक्ष्य की दिशा में बढ़ गईं. वो साल 2020 में यूपी पीसीएस की परीक्षा में सेलेक्ट होकर एक पीसीएस अफसर बन गई हैं, लेकिन उनका अभी कलेक्टर बनने का सपना बाकी है.  aajtak.in से बातचीत में संजूरानी ने कहा कि मेरे घरवाले मेरी शादी करना चाहते थे लेकिन मैं आगे की पढ़ाई करना चाहती थी. फिर साल 2013 में जब मेरी मां की डेथ हुई तो मैंने सोचा कि मैं अलग रहूं, क्योंक‍ि मेरी सोच उनसे (परिवार के पुरुषों) से नहीं मिलती. वो कहती हैं कि सोच आज भी कम मिलती है. परिवार के लोग मेरी शादी करना चाहते थे. तभी मैंने घर छोड़ा और दिल्ली में आकर तैयारी शुरू कर दी.  वो बताती हैं कि यहां आकर अपना खर्च ...

पहले ही प्रयास में मात्र एक साल की तैयारी से 22 साल की अनन्या बनीं UPSC टॉपर

                     BY   MY COLLEGE NOTIFIER प्रयागराज की अनन्या सिंह ने 22 साल की उम्र में अपने पहले ही प्रयास में साल 2019 की यूपीएससी परीक्षा में 51वीं रैंक के साथ टॉप किया. अनन्या आज बता रही हैं कि कैसे एक से डेढ़ साल की तैयारी में भी इस परीक्षा को पास किया जा सकता है. यूपीएससी की तैयारी जहां किसी-किसी के लिए एक लंबी जर्नी हो जाती है, वहीं कुछ कैंडिडेट ऐसे भी होते हैं जो स्मार्ट वर्क, हाडवर्क और प्रॉपर स्ट्रेटजी के बलबूते पहले ही साल में मंजिल पा लेते हैं. ऐसे स्टूडेंट्स की इस सफलता में बहुत से फैक्टर काम करते हैं पर सबसे अहम होता है हार्ड वर्क प्लस स्मार्ट वर्क. प्रयागराज की अनन्या भी ऐसी ही एक कैंडिडेट हैं जिन्होंने सही दिशा में प्लानिंग और कड़ी मेहनत से पहले ही प्रयास में न सिर्फ यूपीएससी परीक्षा पास की बल्कि अपने आईएएस बनने के सपने को भी साकार किया. अनन्या बचपन से ही आईएएस बनना चाहती थी और ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष से उन्होंने इस दिशा में प्रयास भी शुरू कर दिए थे. जिसमें सबसे कॉमन लेकिन महत्वपूर्ण था न्यूज पेपर पढ़न...

जिंदगी में संघर्ष और मेहनत करने वालों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता

                 BY   MY COLLEGE  NOTIFIER बचपन में पैरों पर नहीं हो पाती थी खड़ी, फिर भी ऐसे बनीं दुनिया की सबसे तेज धाविका जिंदगी में संघर्ष और मेहनत करने वालों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता,बसर्ते कोई भी काम सच्ची निष्ठा से किया जाए। वो कहते है यदि कोई काम सच्चे मन से किया जाए तो सारी कायनात उसे पूरा करने में आपकी पूरी मदद करती है। विल्मा रुडोल्फ ऐसी ही शख्सियत हैं, जिन्होंने दिव्यांग होने के बावजूद नामुमकिन शब्द को मुमकिन में बदल दिया। विल्मा रुडोल्फ का जन्म 1940 में अमरीका के टेनेसी प्रांत के एक गरीब घर में हुआ था। इनकी मां  घर-घर जाकर काम करती तो पिता कुली का काम किया करते थे। एक दिन अचानक से विल्मा को पैरों में बहुत तेज़ दर्द होने लगा,जिसके बाद उनके परिवार वाले इलाज के लिए अस्पताल लेकर गए, जहां जाकर उन्हें पता चला कि उनकी बेटी को पोलियो हो गया और अब वे कभी चल नहीं पाएगी। बचपन में जब विल्मा अपने भाई -बहनों को खेलते हुए देखती तो उन्हें काफी तकलीफें होती और वो कई बार रोने भी लग जाती थी। वो अपनी मां से कहती उन्हें भी खे...

जॉब के साथ शुरू किया सलाद बेचने का बिज़नेस

             BY    MY COLLEGE  NOTIFIER जिंदगी में हमें बहुत कम लोग ऐसे देखने को मिलते हैं, जो अपने करियर के साथ ही अपने जुनून को भी पूरा करते हैं। अक्सर यही होता है कि लोग एक ही चीज़ पर ज्यादा फ़ोकस कर पाते हैं। लेकिन पुणे की मेघा बाफना ने इस बात को गलत साबित कर दिखाया, उन्होंने करियर के साथ ही अपने सपनों को भी पूरा किया और खड़ा किया खुद का बिज़नेस। महाराष्ट्र के पुणे शहर की रहने वाली मेघा ने सिर्फ वाट्सऐप के जरिए सलाद का बिज़नेस खड़ा किया, उन्हें बचपन से ही तरह - तरह के सलाद बनाना काफी ज्यादा पसंद था। बिज़नेस शुरू करने से पहले मेघा रियल एस्टेट सेक्टर में काम रही थी, लेकिन वो जॉब करने के दौरान खुद का बिज़नेस शुरू करने का सपना संजोय थी,इसलिए उन्होंने अपने बिज़नेस की शुरुआत बहुत ही अनोखे तरीके से शुरू की। उन्होंने एक क्रिएटिव ऐड तैयार कर उसे वाट्सऐप पर अपने दोस्तों के ग्रुप में शेयर कर दिया, उन्होंने लिखा - यदि कोई हेल्दी और अलग-अलग वैराईटी, अलग स्वाद के सलाद खाना चाहता है तो उन्हें ऑर्डर दे सकते हैं। इसके बाद पहले दिन उन्हें  5 पैके...

रोज़ाना 5 रुपए दिहाड़ी पाने वाली ज्योति रेड्डी ने विदेश में खड़ी कर दी करोड़ों की कंपनी

          BY  MY COLLEGE NOTIFIER कहावत है कि सपने उन्हीं के सच होते हैं,जो सपने देखना किसी भी हाल में नहीं छोड़ते हैं। ऐसी ही कहानी है एनआरआई, ज्योति रेड्डी की, जिन्होंने जिंदगी में चल रही तमाम मुश्किलों को दरकिनार कर अपनी काबिलियत और मेहनत के बल बूते मात्र 5 रुपए रोज की मेहनताना से करोड़ों तक का सफर तय किया है। ज्योति का जन्म तेलंगाना के वारांगल जिले के एक गरीब परिवार में हुआ था, बचपन में उनकी मां का देहांत हो गया था। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से उनके परिवारवालों ने उन्हें एक अनाथालय में छोड़ दिया, यही रहकर ज्योति ने मन लगाकर पढ़ाई करनी शुरू कर दी और 10वीं का एग्जाम उन्होंने फर्स्ट डिवीजन से पास किया। लेकिन गरीबी के चलते वो आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई। घर की माली हालत ठीक न होने के चलते उन्होंने पढाई छोड़कर खेतों में काम करना शुरू कर दिया। जहां उस वक़्त उन्हें  मजदूरी के रूप में सिर्फ 5 रुपये मिलते थे। लेकिन ज्योति की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई, बल्कि 16 साल की उम्र में उनकी शादी उनसे 10 साल बड़े एक व्यक्ति से कर दी गई थी। शादी के दो ...

इस शख्स ने दिव्यगों को कमजोर समझने वाले लोगों के मुंह पर जड़ा थप्पड़

                   BY  MY COLLEGE NOTIFIER अपने सपनों को साकार करने के लिए हमें एक संपूर्ण शरीर की नहीं बल्कि आत्मविश्वास और जुनून की जरूरत होती है। कहावत है कि हम सफलता की सीढ़ियां तभी चढ़ सकते हैं,जब हमारी मेहनत की नींव मजबूत होगी। इन पंक्तियों को सूरत के रहने वाले कल्पेश चौधरी ने सच कर दिखाया है। उन्होंने दिव्यांग होने के बाद भी यह साबित कर दिखाया कि मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों को भी कठोर परिश्रम और अपनी काबिलियत के दम पर हराया जा सकता है।   कल्पेश चौधरी का जन्म गुजरात के सूरत में हुआ था और वो बचपन से ही पोलियो जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित थे। पोलियो ने उनके शरीर को बुरी तहर से जकड लिया था। जब उनके माता - पिता ने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि अब उनका एक पैर कभी काम नहीं कर पाएगा, मतलब कल्पेश एक पैर से दिव्यांग हो चुके थे। दुर्भाग्यवश  पोलियो ने कल्पेश के चलने फिरने की क्षमता छीन ली थी, लेकिन उनके हौसले को छिनने में नाकाम रही। दिव्यांग कल्पेश ने एक पैर गवाने के बाद उनके सामने आने वाली चुनौतियों से लड़ने के लिए ख...

जो लोग जिंदगी में हालातों से हार नहीं मानते, वो देर से ही सही सफलता हासिल कर ही लेते हैं

                       BY  MY COLLEGE  NOTIFIER  ऐसी ही शख्सियत हैं ऋषिकेश की अंजना माली जिन्होंने दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद भी तमाम लोगों के अंदर आगे बढ़ने की उम्मीद जगाई है.आइए बताते हैं कैसे बदली इनकी जिंदगी... अंजना माली ऋषिकेश के एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं, वो बचपन से ही दिव्यांग हैं। उनके दोनों हाथ नहीं हैं और शरीर के दूसरे अंगों में भी दिक्कतें हैं।  इसलिए उन्होंने दूसरे काम के बजाए भीख मांगना शुरू कर दिया था। क्योंकि वो चाहती थी कैसे भी करके वो अपने परिवार की मदद कर सके। जब अंजना फुटपाथ पर भीख मांगा करती थी, तो उस वक्त लोग 1-2 रुपए देकर चले जाते थे। अंजना इन्हीं पैसे से पेंटिंग के लिए जरूरी रंग और ब्रश खरीदती थी, हाथ न होने के बावजूद भी अंजना गज़ब की चित्रकारी करती हैं।  वो पैरों की उंगलियों से तरह - तरह की पेंटिंग बनाती हैं, जिसे ऋषिकेश घूमने जाने वाले लोग, अंजना का हुनर देखकर होश खो बैठते हैं। अंजना एक दिन ऋषिकेश के घाट पर बैठी - बैठी अपने पैरों से चारकोल का एक टुकड़ा पकड़कर कुछ लि...

महिलाओं को व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति जागरूक करने वाला The Real Padman

               BY  MY COLLEGE NOTIFIER हमारे समाज में आज भी माहवारी यानी की पीरियड्स को लेकर जल्दी कोई बात नहीं करता और महिलाओं के साथ भेदभाव होते आ रहा है। पीरियड्स को लेकर आज भी पर्दा करने के साथ ही महिलाओं को किचन में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। साथ ही पहले के समय सेनेटरी नैपकिन की जगह गंदा कपड़ा इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सेनेटरी नैपकिन की शुरुआत कब और कैसे हुई। अरुणाचलम मुरुगननाथम का जन्म तमिलनाडु के कोयंबटूर के एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वो छोटे थे तभी उनके पिता की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जिसके बाद घर में पैसों की तंगी होने लगी। अरुणाचलम को  मजबूरन कॉन्वेंट स्कूल छोड़कर म्युंसिपल स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। घर में पैसों की जरूरत थी, इसलिए उस वक़्त उनकी मां खेतों में काम किया करती थीं। जिसके बदले में उन्हें रोजाना 7 रुपए का मेहनताना मिलता था और साथ ही उनकी मां सिलाई भी करती थी। ऐसे में दिन - रात अपनी मां को काम करता देख अरुणाचलम को बहुत तकलीफ होती, इसलिए उन्होंने 10वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़...

समाज में परिवर्तन लाने के लिए भारत की बेटी ने शिक्षा को बनाया अपना हथियार

                      BY  MY COLLEGE NOTIFIER कहते है कि जिंदगी में कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,क्योंकि असफलता के बाद एक न एक दिन सफलता आपके कदम जरूर चूमती है। कुछ ऐसी ही है मुंबई की 'आरती नाइक' की कहानी, जिन्होंने अपनी जिंदगी में काफी दुःख देखे और झेले। लेकिन अपनी हिम्मत को कभी भी टूटने नहीं दिया। आरती नाइक का जन्म मुंबई के स्लम मुलुंद गरीब परिवार में हुआ था,उन्हें बचपन से ही  हर छोटी - छोटी चीज़ों  के लिए संघर्ष करना पड़ता था। गरीबी के कारण उनकी ठीक तरह से पढ़ाई नहीं होने की वजह से आरती 10वीं में फेल हो गईं थी, क्योंकि उनके परिवार में भी कोई गाइड करने वाला नहीं था। आरती  आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन परिवार की आर्थिक हालत इस स्थिति में नहीं थी की उनको पढ़ा सके। लेकिन आरती ने हिम्मत नहीं हारी और मुंबई के चोल में रहने के बावजूद भी उन्होंने ज्वैलरी बनाने का काम शुरू किया। वो गले का नेकलेस बनाती थी, जिसे बेचकर वो रोज़ाना केवल 9 रुपए कमाती थी। इस तरह उन्होंने लगातार 3 साल तक इस काम को जारी रखा, क्योंकि वो आत्म...

Stand-up Comedy की दुनियां में "काम वाली बाई" ने मचाई धूम

           BY  MY COLLEGE  NOTIFIER एक House Maid से कॉमेडी की दुनियाँ में इनका प्रवेश इतना आसान भी नहीं था। ये हर दिन सुबह 4 बजे ही घर से निकल पड़ती हैं और लोकल ट्रेनों में Imitation Jewellery बेचती हुयी सुबह 7 बजे से शाम 2 बजे तक मलाड इलाके में लोगों के घरों में खाना बनाने का काम करती थीं। इसके बाद घर लौटकर अपने बीमार पति और बेटियों के देख रेख भी करतीं और फिर रात को ही अपने अगले दिन की शुरुआत की तैयारियां कर लेतीं। जिस अपार्टमेंट में दीपिका काम करती थीं, वहीँ एक महिला थीं संगीता व्यास जिन्होंने इनके कॉमेडी के हुनर को पहचाना। संगीता ने एक बार Maids और ड्राइवरों के लिए Talent Show रखा जिसमें दीपिका को अपने हुनर को दिखाने का सुनहरा अवसर मिला। दीपिका के इस प्रदर्शन को प्रसिद्द Stand-up Comedian आदिति मित्तल ने भी देखा जिन्होंने इन्हें एक बड़े स्टेज पर इसे पेश करने के लिए प्रोत्साहित किया। बस फिर क्या था, एक गुमनाम सी "काम वाली बाई" रातोंरात Stand-up Comedian में बदल गयी। Stand-up Comedy के छुपे हुए हुनर ने फिलहाल दीपिका को काफी राहत दी है जिसके चलते...

अभावों में भी अपने सपनो को रखा ज़िंदा और जीवन में पाया एक ऊँचा मुकाम

              BY  MY COLLEGE NOTIFIER कई ऐसे भारतीय क्रिकेटर हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और काबिलियत के बलबूते अपने परिवार के साथ ही देश का नाम रोशन किया है.इन्ही में से एक हैं अहमदाबाद के  जसप्रीत बुमराह जिन्होंने बहुत ही कम समय में तेज गेंदबाज का ताज हासिल कर लिया। जसप्रीत बुमराह का जन्म अहमदाबाद में हुए था,  उन्हें बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था। उनके दोस्तों को जहां बैटिंग करना अच्छा लगता था, वहीं बुमराह को गेंदबाज़ी करना बेहद ही पसंद करते थे। महज़ 7 साल की उम्र में उनके सिर से पिता का साया उठा गया, जिसके बाद  बुमराह की मां ने अपने दोनों बच्चों की परवरिश की। पिता की मौत के बाद घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी, उनकी मां जैसे तैसे करके अपने परिवार का खर्च चला रही थी। लेकिन बुमराह का अभी भी गेंदबाज़ी के प्रति लगाव कम नहीं हुआ था। बुमराह की मां एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थीं और जसप्रीत भी उसी स्कूल में पढ़ते थे। स्कूल से घर आने के बाद बुमराह  दीवार पर ही गेंदबाज़ी करना शुरू कर देते थे, जिसकी वजह से मां की डांट भी सुननी पड़ती थ...

लिमिटेड रिसोर्स और रिपिटेड रिवीजन से शिखा बनीं UPSC टॉपर

            BY  MY COLLEGE NOTIFIER साल 2017 में दूसरे प्रयास में 16वीं रैंक के साथ सफलता पाने वाली शिखा सुरेन्द्रन ने शेयर की अपनी प्रिपरेशन स्ट्रेटजी.   केरल की शिखा जब यूपीएससी की प्रिपरेशन के बारे में बात करती हैं तो चीजों को इतना सरल बना देती हैं कि आपको लगेगा कोई भी इस परीक्षा को पास कर सकता है. हालांकि इससे उनकी मेहनत कम नहीं हो जाती पर दूसरे कैंडिडेट्स से इतर शिखा की बातें कम से कम हिम्मत जगाती हैं कि प्रयास सच्ची और सही दिशा में तो कोई भी इस परीक्षा में सफल हो सकता है. शिखा कहती हैं उनके पिताजी का सपना था कि वे इस क्षेत्र में जाएं पर उन्होंने कभी शिखा को इसके लिए फोर्स नहीं किया. हालांकि समय बीतने के साथ पिताजी का सपना कब शिखा का भी सपना बन गया उन्हें पता भी नहीं चला. बचपन में वे नहीं जानती थी कि डीएम या कलेक्टर कौन होता है पर बड़े होकर जब उन्हें इस क्षेत्र की डाइवर्सिटी और प्रेस्टीज के बारे में पता चला तो उन्होंने तय किया कि वे इस क्षेत्र में ही कैरियर बनाएंगी. चूंकि यूपीएससी परीक्षा का नेचर बहुत ही अनप्रिडिक्टेबल है, इसलिए पहले उन्होंने...