BY MY COLLEGE NOTIFIER
अपने सपनों को साकार करने के लिए हमें एक संपूर्ण शरीर की नहीं बल्कि आत्मविश्वास और जुनून की जरूरत होती है। कहावत है कि हम सफलता की सीढ़ियां तभी चढ़ सकते हैं,जब हमारी मेहनत की नींव मजबूत होगी। इन पंक्तियों को सूरत के रहने वाले कल्पेश चौधरी ने सच कर दिखाया है। उन्होंने दिव्यांग होने के बाद भी यह साबित कर दिखाया कि मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों को भी कठोर परिश्रम और अपनी काबिलियत के दम पर हराया जा सकता है।
कल्पेश चौधरी का जन्म गुजरात के सूरत में हुआ था और वो बचपन से ही पोलियो जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित थे। पोलियो ने उनके शरीर को बुरी तहर से जकड लिया था। जब उनके माता - पिता ने डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि अब उनका एक पैर कभी काम नहीं कर पाएगा, मतलब कल्पेश एक पैर से दिव्यांग हो चुके थे। दुर्भाग्यवश पोलियो ने कल्पेश के चलने फिरने की क्षमता छीन ली थी, लेकिन उनके हौसले को छिनने में नाकाम रही। दिव्यांग कल्पेश ने एक पैर गवाने के बाद उनके सामने आने वाली चुनौतियों से लड़ने के लिए खुद को तैयार कर लिया था।
कल्पेश ने सोचा पढ़ाई ही एक ऐसा सहारा है, जिसकी बदौलत अपने सभी सपनों को पूरा किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने पढ़ाई शुरू कर दी, लेकिन पिता के देहांत के बाद उन्होंने आर्थिक दिक़्क़तों की वजह से 11वीं के बाद अपनी पढ़ाई छोड़ दी। क्योंकि पूरी घर की ज़िम्मेदारी कल्पेश के ऊपर आ गई थी।
जहां एक तरफ वो चलने में असमर्थ थे वहीं दूसरी तरफ बहन की शादी से लेकर परिवार का बोझ उन पर आ पड़ा था। लेकिन इस परिस्थिति में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। कल्पेश के पिता का एक छोटा सा व्यापार था, जिसमें कल्पेश भी अपने पिता का हाथ बटाया करते थे।
पिता के गुज़र जाने के बाद कल्पेश ने कभी भी अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा। उन्होंने अपने कदम को आगे बढ़ाते हुए अपने पिता के बिज़नेस को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। उन्होंने बिज़नेस को सफल करने के लिए पूरा जोर लगा दिया, उन्होंने नए तरीके से बिज़नेस चलाने के तौर-तरीके सीखे और उन्होंने डायमंड सप्लाई का काम बहुत ही छोटे स्तर से शुरू किया। कल्पेश ने कभी भी अपनी शारीरिक कमजोरी को खुद पर हावी नहीं होने दिया। लेकिन कल्पेश के लिए ये सब करना आसान नहीं था लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। आज के समय में कल्पेश डायमंड ट्रेडिंग बिज़नेस का करोड़ों रूपये का सालाना टर्न ओवर है। इसके साथ ही कल्पेश की शादी भी हो चुकी है और उनकी पत्नी भी दिव्यांग हैं और उनके दो बच्चे भी हैं। कल्पेश अपने परिवार संग खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
कल्पेश का कहना है कि दिव्यांगों को भी एक अच्छी लाइफ जीने का पूरा हक़ हैं और इसमें समाज को पूरा साथ भी देना चाहिए। कहावत है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, कल्पेश ने भी चुनौतियों से बिना डरे उनका डट कर सामना किया।
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