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समाज में परिवर्तन लाने के लिए भारत की बेटी ने शिक्षा को बनाया अपना हथियार

 


                    BY  MY COLLEGE NOTIFIER


कहते है कि जिंदगी में कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती,क्योंकि असफलता के बाद एक न एक दिन सफलता आपके कदम जरूर चूमती है। कुछ ऐसी ही है मुंबई की 'आरती नाइक' की कहानी, जिन्होंने अपनी जिंदगी में काफी दुःख देखे और झेले। लेकिन अपनी हिम्मत को कभी भी टूटने नहीं दिया।


आरती नाइक का जन्म मुंबई के स्लम मुलुंद गरीब परिवार में हुआ था,उन्हें बचपन से ही  हर छोटी - छोटी चीज़ों  के लिए संघर्ष करना पड़ता था। गरीबी के कारण उनकी ठीक तरह से पढ़ाई नहीं होने की वजह से आरती 10वीं में फेल हो गईं थी, क्योंकि उनके परिवार में भी कोई गाइड करने वाला नहीं था। आरती  आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन परिवार की आर्थिक हालत इस स्थिति में नहीं थी की उनको पढ़ा सके। लेकिन आरती ने हिम्मत नहीं हारी और मुंबई के चोल में रहने के बावजूद भी उन्होंने ज्वैलरी बनाने का काम शुरू किया। वो गले का नेकलेस बनाती थी, जिसे बेचकर वो रोज़ाना केवल 9 रुपए कमाती थी। इस तरह उन्होंने लगातार 3 साल तक इस काम को जारी रखा, क्योंकि वो आत्मनिर्भर बनना चाहती थी। इस दौरान आरती ने कई सालों तक मेहनत करने के साथ ही
अपनी 10वीं की पढ़ाई पूरी की ली।

इसी बीच आरती ने खुद का दाखिला यशवंतराव चौहान महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी के सोसियोलॉजी विभाग में करवा लिया। जहां से उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई शुरू कर दी। कॉलेज की पढ़ाई करने के दौरान आरती ने कॉल सेंटर में पार्ट टाइम जॉब करनी भी शुरू कर दी थी, ताकि वो परिवार वालों की मदद कर सके। पढ़ाई करने के दरमियान आरती को ख्याल आया कि मेरी जैसी न जाने कितनी लड़कियां हैं जो स्लम में रहती हैं, जिन्हें भी अपनी पढ़ाई के लिए न जाने कितनी परेशानियां उठानी पड़ती होगी। तभी उन्होंने फैसला लिया कि कैसे भी करके दूसरी स्लम के लड़कियों की जिंदगी बदलनी है और उन्हें उस काबिल बनाना है जिसकी वो हकदार हैं। इसी प्रण के साथ उन्होंने 5 लड़कियों के साथ साल 2008 में 'सखी फोर गर्ल एजुकेशन' की शुरुआत की।

आरती को उस वक़्त काफी परेशानियों का अकेले ही सामना करना पड़ा, क्योंकि उस वक़्त उनके पास लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। इसके साथ ही उन्हें पैसों को लेकर भी काफी दिक्कतें आ रही थी, क्योंकि घर की हालत पहले से ही ख़राब थी और कोई मदद करने वाला भी नहीं था। जब आरती ने लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया, तब वो खुद भी पढ़ रही थी और उन्हें गाइड करने वाला कोई न था। आरती ने ऐसी बच्चियों पर ज्यादा ध्यान दिया जो बोलने में भी डरती थी।

हालांकि 3 महीने बाद बच्चों की संख्या बढ़ने लगी और लोग अपने बच्चों को आरती के पास भेजने लगे। आरती ने उस वक़्त खुद से इंटरनेट की मदद से बच्चियों को पढ़ाना शुरू किया, उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा देनी शुरू कर दी,ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सके और आगे चलकर उन्हें परेशानी न हो। आरती की मेहनत को देखते हुए लोगों ने उनकी मदद करनी शुरू कर दी और साथ ही प्रोत्साहन भी बढ़ाने लगे। इसके बाद Ashoka's Youth Venture की तरफ से मदद मिली, जिसके बाद आरती ने बच्चियों के लिए किताबें ख़रीदी , ताकि उन्हें बेहतरीन तरीके से पढ़ा सके। आरती आज अपने सेंटर पर एक अंग्रेजी की लाईब्रेरी भी चलाती हैं। इसके अलावा वो स्लम के बच्चों के घर तक भी किताबें पहुंचाती हैं। आरती चाहती हैं कि हरेक स्लम इलाके के बच्चे आत्मनिर्भर बन सके।

शिक्षा सभी बच्चों के  लिए सबसे जरूरी है, क्योंकि जब देश के बच्चे शिक्षित होंगे तो हमारा देश काफी तरक्की करेगा और नाम रोशन होगा। इसलिए आरती नाइक की तरह ही हम सभी को स्लम इलाकों के बच्चों के लिए उनकी पढ़ाई में हाथ बटाना चाहिए। कम से कम एक बच्चे को शिक्षित करें और देश को आगे बढ़ाने में योगदान दें। "जब पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया"

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