BY MY COLLEGE NOTIFIER
हमारे समाज में आज भी माहवारी यानी की पीरियड्स को लेकर जल्दी कोई बात नहीं करता और महिलाओं के साथ भेदभाव होते आ रहा है। पीरियड्स को लेकर आज भी पर्दा करने के साथ ही महिलाओं को किचन में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। साथ ही पहले के समय सेनेटरी नैपकिन की जगह गंदा कपड़ा इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सेनेटरी नैपकिन की शुरुआत कब और कैसे हुई।
अरुणाचलम मुरुगननाथम का जन्म तमिलनाडु के कोयंबटूर के एक गरीब परिवार में हुआ था। जब वो छोटे थे तभी उनके पिता की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जिसके बाद घर में पैसों की तंगी होने लगी। अरुणाचलम को मजबूरन कॉन्वेंट स्कूल छोड़कर म्युंसिपल स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। घर में पैसों की जरूरत थी, इसलिए उस वक़्त उनकी मां खेतों में काम किया करती थीं। जिसके बदले में उन्हें रोजाना 7 रुपए का मेहनताना मिलता था और साथ ही उनकी मां सिलाई भी करती थी। ऐसे में दिन - रात अपनी मां को काम करता देख अरुणाचलम को बहुत तकलीफ होती, इसलिए उन्होंने 10वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी और दरवाजे, ग्रिल और सीढ़ियां बनाने का काम करना शुरू कर दिया। काफी सालों तक इसी काम में लगे रहे और परिवार का खर्च चलाते रहे।
साल 1962 में उन्होंने शादी कर ली और शादी होने के कुछ ही समय बाद एक दिन उन्हें पता चला की उनकी पत्नी पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड्स नहीं बल्कि गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती है। उन्होंने अपनी पति से पूछा - तुम यह गंदा कपड़ा क्यों इस्तेमाल करती हो? जिसके बाद उनकी पत्नी ने कहा सभी महिलाएं यही कपड़ा इस्तेमाल करती हैं। इतना ही नहीं उनकी पत्नी को पैड्स के बारे में जानकारी तक नहीं थी। एक दिन अपनी पत्नी को खुश करने के लिए
सेनेटरी नैपकिन खरीद कर लाए, लेकिन उनकी पत्नी यहकर मना कर दिया बहुत महंगा है, इसका इस्तेमाल करना संभव नहीं। इस वाक्या के बाद उन्होंने
सस्ते पैड्स बनाने की ठान ली।
शुरुआत के दिनों में अरुणाचलम ने कॉटन के सैनिटरी पैड्स बनाने शुरू किए, लेकिन उनकी पत्नी और बहनों ने उसे रिजेक्ट कर दिया। जिसके बाद उन्होंने गांव की दूसरी लड़कियों को टेस्ट के लिए मनाने की कोशिश भी की, लेकिन यहां भी उनकी बात नहीं बन पाई। इसके बाद अरुणाचलम ने इसे खुद ट्राई करने का फैसला लिया। इसके बाद उन्होंने एक 'गर्भाशय' बनाया, जिसमें उन्होंने बकरी का खून भर लिया और उन्होंने उसमें कुछ मिलाया, जिससे खून जमे ना। वो सेनेटरी नैपकिन को अपने कपड़ों के अंदर पहन कर दिन भर घूमते थे। वो ऐसा इसलिए करते थे क्योंकि वो देखना चाहते थे कि उनके द्वारा बनाए गए सेनेटरी नैपकिन्स कितने मात्रा में खून सोख पाने में सक्षम है।
पैड्स बनाने के लिए बहुत कम पैसे का मैटीरियल इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अंत में प्रोडक्ट 40 गुना ज्यादा दाम में बिकता था। यही सोचकर मुरुगनाथम ने सस्ते पैड्स के आविष्कार की ठान ली। कुछ समय बाद मुरुगनाथम के रिसर्च से तंग आकर उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर अपने पिता के घर चली गई, वहीं उनकी मां ने भी उन्हें छोड़ दिया था और गांव वालों ने उन्हें पागल समझकर उनका बहिष्कार कर दिया। लगातार कठोर परिश्रम के बाद उन्हें ये पता चल पाया कि पैड्स आखिर किस मैटीरियल से बनते हैं। रिसर्च शुरू करने के करीब 4 साल बाद वो सस्ते सैनिटरी पैड्स बनाने की तकनीक उनके हाथ लगी। जिसके बाद उन्होंने घर - घर तक सैनिटरी पैड्स पहुंचाई।
आज मुरुगनाथम जयाश्री इंडस्ट्रीज के मालिक हैं, जो देशभर के गांव में सस्ते सैनिटरी पैड्स पहुंचाते हैं। इसके साथ ही 2014 में उन्हें टाइम्स मैगजीन 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में चुना गया और 2016 में उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया। अरुणाचलम मुरुगनाथम की जिंदगी पर फिल्म 'पैडमैन' बनाई जा चुकी हैं, इस फिल्म में अक्षय कुमार अहम किरदार निभाते हुए नज़र आए थे।
मुरुगनाथम जी का ऐसा करने के पीछे एक ही मकसद था कि महिलाओं को माहवारी के समय में गंदे कपडे न यूज़ करने पड़े और साथ ही हमारे समाज के लोग भी जागरूक हो सके।
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