BY MY COLLEGE NOTIFIER.
कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति अपनी मेहनत और संघर्ष से मंज़िल को हासिल कर ही लेता है, एक ऐसी ही शख्सियत हैं तमिलनाडु की पैट्रिशिया नारायण जिन्होंने ज़िन्दगी में कभी हार नहीं मानी और 50 रुपए से तय किया करोड़ों तक का सफर।
पैट्रिशिया नारायण का जन्म तमिलनाडु में हुआ था और वो एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थी। पैट्रिशिया नारायण को कॉलेज में पढ़ाई करने के दौरान उन्हें एक लड़के से प्यार हो गया था, जिसके बाद उन्होंने अपने परिवार के खिलाफ जाकर लव मैरेज कर ली थी। लव मैरिज करने के कारण दोनों के माता-पिता ने उनसे नाता तोड़ लिया था। कुछ दिन तक पैट्रिशिया नारायण और उनके पति के बीच सब कुछ सही रहा था,लेकिन धीरे - धीरे उनके बीच का प्यार झगड़े में बदल गया। पेट्रीसिया नारायण का पति ड्रग एडिक्ट था और अपनी पत्नी पर अत्याचार करता था। पैट्रिशिया नारायण ने अपने पति के तमाम अत्याचारों को सहती रही और उन्होंने ऐसे में ही दो बच्चों को जन्म दिया था।
पैट्रिशिया नारायण के पति का अत्याचार जब हद से ज्यादा बढ़ने लगा तो उन्हें अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता होने लगी और उन्होंने उस वक़्त अलग होना ही बेहतर समझा। उस हालात में पैट्रिशिया नारायण के पास कहीं जाने की गुंजाइश भी नही थी, क्योंकि उनके पिता पहले ही उनसे नाता तोड़ चुके थे।
तब पैट्रिशिया नारायण ने अपने बच्चों का पालन - पोषण करने के लिये कुकिंग के हुनर को अपना हथियार बनाया। परिस्थिति से बुरी तरह टूट चुकीं पैट्रिशिया नारायण ने चेन्नई के मरीना बीच पर पहिए वाला एक कियोस्क खोला, जिसपर उन्होंने कॉफी, समोसे और कटलेट बेचने का काम शुरू किया। लेकिन पहले दिन सिर्फ 50 रुपए की कमाई हो पाई, जिसे देखकर वो काफी ज्यादा दुःखी हो गई थी। तब उनकी मां ने बड़े ही प्यार से पैट्रिशिया को समझाया और मेहनत के साथ आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।
पैट्रिशिया नारायण अपने फूड के क्वालिटी पर विशेष ध्यान देने लगी थी, फिर धीरे-धीरे लोग उनके फ़ूड को पसंद करने लगे और उनकी आमदनी बढ़ती चली गई। तब पैट्रिशिया नारायण ने कैंटीन और कैटरिंग का रास्ता अपनाया। इसके बाद पैट्रिशिया नारायण ने स्लम क्लियरेंस बोर्ड और नेशनल मैनेजमेंट ट्रेनिंग स्कूल में कैंटीन लगाई। इसके बाद पैट्रिशिया की ज़िन्दगी ही बदल गई थी और उनकी घर की आर्थिक स्थिति भी काफी सुधर गई थी। अपनी काबिलियत के दम पर पैट्रिशिया ने अपने बच्चों को लिखाया-पढ़ाया। फिर जब उनकी बेटी बड़ी हो गई थी तो उन्होंने उसकी शादी कर दी, लेकिन नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था और एक कार एक्सीडेंट में उनकी बेटी और दामाद की मौत हो गई थी।
इस घटना ने पैट्रिशिया को तोड़ कर रख दिया था और पैट्रिशिया अपने अपने वेंचर्स से दूर होने लगीं थी। तब ऐसे समय में उनका बेटा अपनी मां का सहारा बना और उसने घर की जिम्मेदारी संभाली और अपनी बहन के नाम से 'संदीपा' नाम से पहला रेस्टोरेंट खोला। लेकिन शुरूआती दौर में रेस्टोरेंट में केवल 2 कर्मचारी काम करते थे लेकिन अब 200 से ज्यादा लोग काम करते हैं। संदीपा रेस्टोरेंट के चेन्नई में आज करीब 14 आउटलेट्स चल रहे हैं,जिससे आज पैट्रिशिया नारायण की कमाई करोड़ो में पहुंच चुकी है। 2010 में पैट्रिशिया को फिक्की आंत्रप्रेन्योर ऑफ द ईयर के अवॉर्ड से नवाज़ा गया था।
ऐसे में कह सकते हैं कि पैट्रिशिया नारायण ने शौख़ से बिज़नेस की दुनिया में कदम नहीं रखा, बल्कि हालात ने उन्हें मज़बूर कर दिया था। उन्होंने निरंतर संघर्ष करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई।
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