BY MY COLLEGE NOTIFIER.
60 साल के बाद जहां लोग आराम करते हैं, वहीं यूपी की शूटर दादी ने अपनी ज़िन्दगी की नई शुरुआत और रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ते हुए अपने लिए जीना शुरू किया और अपने निशानेबाज़ी से देशभर में लहराया ।
शूटर दादी उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखती हैं, उनका जन्म 1 जनवरी 1932 को हुआ था। लगभग 16 साल की उम्र में जौहड़ी के किसान भंवर सिंह से उनकी शादी हो गई थी। जिसके बाद अन्य गृहणियों की तरह उन्होंने भी अपनी ज़िन्दगी को परिवार की देखभाल और घर के काम काज में झोंक दिया। वो रोज़ाना खाना बनाने, बर्तन और कपडे साफ़ करने से लेकर जानवरों की देखभाल जैसी हर काम को पूरी ईमानदारी के साथ करती थी। शुरुआत के दिनों में धीरे - धीरे घर के कामों में वक्त का पहिया घूमता गया और वो मां बन गईं। मां बनने के साथ ही उन पर पहले से भी ज्यादा जिम्मेदारियों का बोझ आ गया। उन्होंने एक के बाद एक अपने सभी बच्चों की शादी कर दी, इन सब में उनकी उम्र भी ढलती चली गई और वह देखते ही देखते बूढ़ी होती चली गईं।
समय के इसी चक्र में वो बहू से दादी कब बन गईं वक़्त का पता ही नहीं चला, सभी दादियों की तरह उन्होंने अपने पोते-पोतियों को बड़े ही प्यार से पाला और उन्हें किसी भी प्रकार की कमी नहीं होने दी। शूटर दादी की पोती को बचपन से ही निशानेबाजी में दिलचस्पी थी, लेकिन वो अकेले अभ्यास करने जाने में डरती थी, ऐसे में अपनी पोती की मदद करने के लिए उनकी चंद्रो दादी सामने आई और उन्होंने अपनी पोती का हौंसला बढ़ाया। साथ ही दादी अपनी पोती के संगजोहरी राइफल क्लब गई, लेकिन उनकी पोती अभी भी बहुत ज्यादा डर रही थी उसके हाथ बंदूक को पकड़ने में कांप रहे थे। यह देखकर अपनी पोती का मनोबल बढ़ाने के लिए चंद्रो दादी ने लगभग 60 की आयु में खुद बंदूक उठा ली, यह देख वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए और दादी ने पिस्तौल उठाकर निशाने पर दाग दिया। उस वक़्त दादी इस तरह से निशाना लगा रही थीं, जैसे वह कोई प्रोफेशनल शूटर हों, जिसके बाद राइफल क्लब के कोच ने इत्तेफ़ाक़ मानकर दादी से दूसरी बार निशाना साधने को कहा - दूसरी बार भी दादी ने बिल्कुल निशाने पर गोली चलाई।
कोच ने दादी की छुपी प्रतिभा को पहचान लिया और उन्होंने ट्रेनिंग लेने की सलाह दी, लेकिन दादी ने पहले तो इंकार कर दिया, फिर बाद में वो किसी तरह
इसके लिए तैयार हो गईं, यहां से शुरू हुई शूटर दादी की संघर्ष भरी कहानी ... दादी अपनी पोती के साथ रोज़ाना शूटिंग के लिए आने लगीं, लेकिन जब गांव के लोगों को ये बात पता चली तो उन्हें रास नहीं आया, उन्होंने दादी पर ताने कसने शुरू कर दिए। गांव वाले कहते बुढ़िया सठिया गई है, यहां तक कि उनके पति भी मज़ाक उड़ाते हुए कहते ,कारगिल जावेगी के? लेकिन उनके बेटों ने उनका हौसला बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
वो ऐसा दौर था जब रोटी भी सास-ननद देती थी और बिना उनके मरज़ी के कोई भी काम करना संभव नहीं था। लोगों के लगातार ताने सुनती और उन्हें अभ्यास करने जाने से रोका भी जाता, लेकिन लोगों की बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए वो आगे बढ़ती ही रही । घर में सबके सो जाने के बाद दादी रात में छुप-छुप कर निशाना लगाने की कोशिश करती थी। दादी का मानना हैं कि, सहनशक्ति बड़ी चीज़ होती है, उन्हें समाज को दिखाना था कि एक औरत भी सब कुछ कर करती है, अगर वो दिल से कुछ करने की ठान ले तो .रोज़ाना अभ्यास ने जल्द ही दादी को निशानेबाजी का महारथी बना दिया।
शूटर दादी ने बुढ़ापे में घूंघट में रहकर रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ते हुए अपने सपने को पूरा किया, हालांकि दादी को बचपन से ही निशानेबाजी का शौक था, लेकिन उस समय बंदूक उठाने में झिझकती थी, अपनी पोती की वजह से उनमें भी हिम्मत आने लगी थी। शूटर दादी धीरे - धीरे आसपास के इलाके में अपने निशानेबाजी को लेकर मशहूर होने लगी थी, साथ ही उन्होंने प्रतियोगिताओं में भाग भी लेने लगी थी।
रोजाना अभ्यास के बाद उन्हें दिल्ली में आयोजित एक शूटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका मिला। इस प्रतियोगिता के दौरान उनका मुकाबला दिल्ली के डीआईजी से पड़ा और उन्होंने डीआईजी को हरा कर अपनी जीत का डंका बजा दिया। इस जीत को हासिल करने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और लगातार जीत का परचम लहराती रहीं। उन्हें स्त्री शक्ति सम्मान से नवाजा गया है। आज चंद्रो दादी बच्चों को भी ट्रेनिंग देती हैं। शूटर दादी की ज़िन्दगी पर बॉलीवुड फिल्म सांड की आंख बन चुकी है, इस फिल्म में तापसी पन्नू और भूमि पेडनेकर अहम भूमिका निभाती हुई नज़र आई थी।
जोहरी गांव आज शूटर दादी के नाम से ही जाना जाता है, जो दादी को कभी कोसते और ताने मारते थे आज वही उन पर गर्व करते हैं। शूटर दादी की संघर्ष भरी कहानी समाज को एक प्रेरणा देती है, किसी भी उम्र में कोई भी काम करने के लिए हिम्मत की जरूरत होती है।
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