BY MY COLLEGE NOTIFIER.
अक्सर लोग कहते हैं कि मेहनत का फल मीठा होता है, देर से ही सही लेकिन हमें मिलता जरूर है, इसी कहावत को असल ज़िन्दगी में सच कर दिखाया जयपुर के चांद बिहारी अग्रवाल ने। जिन्हे कभी परिवार के ख़ातिर सड़कों पर पकौड़े बेचने पड़े थे, वहीं आज सैंकड़ों लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।
जयपुर में पैदा हुए चांद बिहारी अग्रवाल का बचपन काफी मुसीबतों से भरा रहा ,उनके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनके पिता को सट्टा खेलने की आदत थी और इसी सट्टेबाजी से उन्होंने पैसे भी कमाए, वो कहावत है कि भाग्य हमेशा एक जैसा नहीं रहता कब पलट जाए इसका अंदाज़ा भी नहीं होता। कुछ ऐसा ही हुआ चांद बिहारी के पिता के साथ भी, वो सट्टेबाजी में सारे पैसे हार गए और घर की हालत बद से बतर हो गई। घर की हालत इतनी ज्यादा ख़राब हो गई कि चांद बिहारी स्कूल ही नहीं जा पाए और उनकी मां के कंधों पर पूरे घर का बोझ आ गिरा।
बचपन से ही चांद बिहारी जीवन में कुछ बड़ा करने का सपना संजोय रहे थे, लेकिन घर की स्थिति को देखते हुए उन्हें अपने सपनों का गला दबाना पड़ा। उन्हें चंद रुपए के लिए काफी कठिन परिश्रम करना पड़ा। जयपुर में अपने पांच भाई-बहनों के साथ बड़े हुए चांद बिहारी ने घर की स्थिति को देखते हुए स्कूल जाने की बजाए अपनी मां का सहारा बनना ज्यादा बेहतर समझा। उन्होंने पैसे की तंगी की वजह से अपनी मां के साथ जयपुर की सड़कों पर पकौड़े बेचने शुरू कर दिए, वो रोज़ाना ठेले लगाकर पकौड़े बेचते ताकि उनके परिवार को दो वक़्त की रोटी नसीब हो सके, लेकिन इन सब में ‘स्कूल जाने का सपना, सपना ही रह गया, क्योंकि स्कूल में दाखिला करवाने के लिए उनके परिवार के पास पैसे नहीं थे। धीरे - धीरे पकौड़े बेचकर घर का यापन करने लगे। फिर चांद बिहारी लगभग 12 साल की उम्र में एक साड़ी शॉप में काम करने लगे, जहां उन्हें 300 रु मंथली सैलरी मिलने लगी। इसके बाद उनके घर की हालत पहले के मुकाबले सुधरने लगी थी, लेकिन वो अपने जीवन में कुछ बड़ा करने का सपना देख रहे थे।
कुछ समय बाद उनके बड़े भाई की शादी बिहार की राजधानी पटना में हो गई, और चांद बिहारी ने शादी में मिले गिफ्ट से 5,000 रुपए बचाए हुए पैसे से कुछ राजस्थानी साड़ियां खरीद जयपुर से पटना की तरफ रूख किया, क्योंकि राजस्थानी साड़ियां महिलाओं को बेहद ही पसंद आती है। पटना पहुंचकर उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर पटना रेलवे स्टेशन के पास फुटपाथ पर ही अपनी दुकान शुरू कर दी। लेकिन तपती गर्मी में जमीन पर बैठकर ग्राहकों को बुलाकर उन्हें साड़ियां दिखाना आसान नहीं था,वो कई बार भूखे-प्यासे लोगों को साड़ियां दिखाने में लगे रहते। उस वक़्त पटना में राजस्थानी साड़ियां बेचने वाले वे अकेले थे,वे दुकानों पर जा-जाकर लोगों से अपनी साड़ियां खरीदने के लिए कहते ताकि उनकी कमाई ज्यादा हो सके। लेकिन अनजान शहर में अपनी पहचान बनाना उनके लिए आसान नहीं था,धीरे - धीरे पटना के लोगों को राजस्थानी साड़ियां पसंद आने लगी और ये देख उनका मनोबल बढ़ता चला गया। लगभग एक साल बाद उन्होंने एक दुकान किराए पर ले ली जिसके बाद उनका बिज़नेस अच्छा चलने लगा, लेकिन भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था।
चांद बिहारी की ज़िन्दगी में एक के बाद एक दुःखो का पहाड़ टूटता ही जा रहा था, साड़ी का बिजनेस अच्छा चल ही रहा था कि एक दिन अचानक उनके दुकान पर चोरों ने हमला बोल दिया, जिसके बाद मेहनत से खड़ा किया उनका बिज़नेस एक ही पल में तहस - नहस हो गया और एक बार फिर उसी राह पर खड़े हो गए, जहां से उन्होंने आगे बढ़ने की शुरुआत की थी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने अपने भाई की मदद से साड़ी का काम छोड़कर
आभूषण का काम शुरू कर दिया था। उन्होंने घूम-घूम कर आभूषण बेचने शुरू कर दिए और भाई की मदद से और बचाए हुए कुछ पैसे से उन्होंने ज्वैलरी हाउस की नींव रखी। पहले तो इस बिज़नेस में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन मेहनत और संघर्ष के बल पर वो इस बिज़नेस में धीरे - धीरे आगे बढ़ते चले गए, हालांकि उनके लिए साड़ी के बाद आभूषण का दुकान शुरू करना आसान नहीं था।
पहले तो उनकी दुकान पर ग्राहक नहीं आए, लेकिन कुछ दिनों बाद उनकी मेहनत रंग लाई और उनके आभूषण को लोगों द्वारा पसंद किया जाने लगा, जिसके बाद चांद बिहारी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर उन्होंने अपने हुनर के दम पर गोल्ड का कारोबार शुरु किया। अपनी क्वालिटी और भरोसे के दम पर उन्होंने अपना ये कारोबार अच्छे तरीके से जमा लिया, आज बिहार और आसपास के राज्यों में इनके कारोबार को हर कोई जानने लगा और इनके शोरुम की सलाना टर्नओवर 20 करोड़ रुपए से अधिक है।
चांद बिहारी ने मेहनत और कड़े संघर्ष की बदौलत अपनी छोटी सी दुकान को बड़ी कंपनी में तब्दील कर दिया, उनके परिवार वालों ने कभी सोचा भी नहीं था कि बिना स्कूली शिक्षा प्राप्त किए उनका बेटा परिवार का नाम रोशन करेगा।
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